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Tuesday, March 26, 2024

Lok Sabha Election 2024: कानपुर लोकसभा सीट में ब्राह्मणों के बीच होगा चुनावी संघर्ष

 कभी वामपंथियों का गढ़ रहे कानपुर में 1991 से अब तक लोकसभा की लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच ही रही है। इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन के चलते कानपुर की सीट कांग्रेस के खाते में है और कांग्रेस ने यहां ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाते हुए आलोक मिश्रा को कानपुर से प्रत्याशी बनाया है। आलोक मिश्रा एआईसीसी के सदस्य भी हैं। जबकि भाजपा ने रमेश अवस्थी को मैदान में उतारा है। यानी लड़ाई ब्राह्मण प्रत्याशियों के बीच है।

There will be electoral struggle between Brahmins in Kanpur Lok Sabha seat.

क्या रहा है ट्रेंड?

- 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में कानपुर सेंट्रल सीट से कांग्रेस के हरिहर नाथ शास्त्री जीते। इसके बाद हुए दो उपचुनावों में क्रमश: शिवनारायण टंडन और प्रफेसर राजाराम शास्त्री जीते।- 1957 के दूसरे चुनाव में मजदूर नेता निर्दलीय एसएम बनर्जी ने कांग्रेस से यह सीट छीनी। बनर्जी को वामपंथी पार्टियों से भरपूर समर्थन मिलता था। अगले 20 साल तक बनर्जी कानपुर के सांसद रहे।

- आपातकाल के बाद 1977 में कानपुर के वोटरों ने जनता पार्टी के मनोहर लाल को चुना।

- 1980 में कांग्रेस के टिकट पर आरिफ मोहम्मद खान कानपुर से जीते। वह फिलहाल केरल के राज्यपाल हैं।

- 1984 में कांग्रेसी नरेश चंद्र चतुर्वेदी ने ये सीट जीती।

- 1989 में सीपीएम की सुभाषिनी अली जीतीं।

- मंदिर आंदोलन का असर कुछ ऐसा रहा कि 1991, 1996 और 1998 में भाजपा के जगतवीर सिंह द्रोण विजयी रहे।- 1999 में स्थिति बदली और कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल ने विजय हासिल की। इसके बाद वह लगातार तीन चुनाव जीते।

- 2014 की मोदी लहर में भाजपा के मुरली मनोहर जोशी ने श्रीप्रकाश जायसवाल को 2.22 लाख वोटों से हराया।

- 2019 में भाजपा के सत्यदेव पचौरी ने फिर श्रीप्रकाश को 1.55 लाख वोटों से हराया।

क्षेत्रीय समीकरण

- कानपुर सीट पर अनुमानित 16 से 18 फीसदी ब्राह्मण, 14 से 15 फीसदी मुस्लिम, 6 फीसदी क्षत्रिय, 18 से 19 फीसदी वैश्य, सिंधी और पंजाबी हैं। बचे करीब 35 से 40 फीसदी मतदाता एससी और ओबीसी वर्ग से हैं।

- कानपुर लोकसभा क्षेत्र में 10 विधानसभा सीटें आती हैं। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा का सबसे ज्यादा फोकस ब्राह्मण बहुल गोविंदनगर और किदवईनगर सीटों पर होगा। इसके अलावा बची तीन सीटों पर वैश्य, दलित और ओबीसी वोटर अहम होंगे।

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