सिर्फ 17 वर्ष की श्रद्धा ने वर्ष 2025 की हाईस्कूल परीक्षा में 600 में से 581 अंक (96.83%) प्राप्त कर जनपद में टाॅपर का स्थान हासिल किया था. इसी उपलब्धि के सम्मान में जिला प्रशासन ने उन्हें सांकेतिक रूप से जिलाधिकारी का दायित्व सौंपा. असली जिलाधिकारी जितेन्द्र प्रताप सिंह ने उन्हें फूलों का गुलदस्ता भेंटकर कुर्सी संभलवाई. आत्मविश्वास से भरी श्रद्धा ने मुस्कुराते हुए कहा यह सिर्फ कुर्सी नहीं, जिम्मेदारी और भरोसे का प्रतीक है. कुर्सी संभालने के बाद श्रद्धा ने फरियादियों की शिकायतें सुनीं. किसी का जमीनी विवाद था, तो कोई पुलिस की लापरवाही से परेशान था. श्रद्धा ने सभी की बात पूरी गंभीरता से सुनी और अधिकारियों को आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए. मीरपुर छावनी निवास अनीसा की शिकायत पर श्रद्धा ने संबंधित क्षेत्राधिकारी एवं थाना प्रभारी रेलबाजार को तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए.
वहीं दर्शनपुरवा निवासी अरविंद गुप्ता के भूमि विवाद प्रकरण में उन्होंने एसीएम-प्रथम व थाना फजलगंज को तथ्यात्मक जांच कर गुणवत्तापूर्ण निस्तारण का आदेश दिया. उनके बगल में बैठे जिलाधिकारी ने कहा कि “मिशन शक्ति” का उद्देश्य यही है. बालिकाओं में आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता और प्रशासनिक समझ विकसित करना. श्रद्धा जैसी बेटियां आने वाले समय में समाज और शासन की दिशा तय करेंगी. कार्यालय में मौजूद अधिकारी-कर्मचारी श्रद्धा के आत्मविश्वास और संवेदनशीलता से प्रभावित दिखे. श्रद्धा की आंखों में चमक थी, वही चमक जिसमें पिता आलोक दीक्षित के संघर्ष की कहानी झिलमिला रही थी. पिता, जो ऑटो चलाकर घर का खर्च और बेटी की पढ़ाई पूरी करते रहे, अपनी बिटिया को जिलाधिकारी की कुर्सी पर बैठा देख गर्वित हो उठे. श्रद्धा फिलहाल एनडीए की तैयारी कर रही हैं.
उनका सपना सेना में अफसर बनकर देश की सेवा करने का है. अपने 30 मिनट के अनुभव को वे जिंदगी का सबसे सुनहरा अध्याय बताती हैं. उन्होंने कहा कि कभी वक्त की लंबाई नहीं, हौसले की ऊंचाई तय करती है कि इतिहास में नाम कैसे दर्ज होता है. बड़ा बदलाव लाने के लिए बस नीयत में सच्चाई और दिल में आग चाहिए. जिलाधिकारी ने श्रद्धा को बधाई देते हुए चॉकलेट और किताबों का उपहार दिया.
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