डूबतीं मालती, मगरमच्छ और एक पेड़
पानी में गिरते ही मालती को होश आया कि उन्होंने कितना बड़ा कदम उठा लिया है। लेकिन तैरना जानने की वजह से उन्होंने हिम्मत बटोरी और किनारे तक तैरकर पहुंच गईं। किनारे पहुँचते-पहुँचते उनका सामना पानी में मौजूद एक बड़े मगरमच्छ से हो गया, जिससे भयभीत होकर वह मौक़े पर ही एक पास के पेड़ पर चढ़ गईं — और फिर पूरी रात वहीं बैठी रहीं ।
रात और सुबह का संघर्ष
अँधेरी, तेज धारा, मगरमच्छ का खौफ — ऐसी परिस्थितियों में जो रात मालती ने पेड़ पर बिताई, वह उनके लिए जीवन की सबसे लंबी रात थी। भूख, प्यास या थकान की जगह केवल एक ही ख्याल सताता रहा: मगरमच्छ के हमले से बचना ।
सुबह गांव के लोग जब गंगा के किनारे से गुज़रे, तब उन्होंने पेड़ पर बैठी मालती की आवाज़ सुनी। हैरान ग्रामीण मदद के लिए आगे आए और फौरन पुलिस को खबर की ।
पुलिस की समय पर मदद और परिवार का मिलन
जाजमऊ पुलिस चौकी की टीम मौके पर पहुंची और चाइल्डलाइन की मदद से मालती को सुरक्षित नीचे उतारा। पति सुरेश को बुलाया गया, जो पहले सोच रहे थे कि मालती थोड़ी देर में घर लौट आएंगी क्योंकि वह पहले भी नाराज़ हो कर घर छोड़ कर चली गई थीं। पुलिस की समझाइश और पति-पत्नी की दोनों ओर से गलती स्वीकारने के बाद, उन्हें शांतिपूर्वक घर भेज दिया गया
यह पूरा वाकया किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं — एक छोटी सी कहासुनी से शुरू हुआ विवाद, आवेश में गंगा में छलांग, मगरमच्छ का खौफ, पेड़ पर रात गुजारना और सुबह मानवता की मदद। मालती इस घटना के बाद कहती हैं कि “ऊपरवाले ने मुझे दूसरी जिंदगी दी है।”
इस घटना ने न केवल कानपुर के आसपास के इलाके में चर्चा फैला दी है, बल्कि यह हमें यह याद दिलाती है कि किसी भी विवाद या क्षणिक गुस्से का असर कितना गहरा और अप्रत्याशित हो सकता है।
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