धरने के दौरान व्यापारियों ने महाराष्ट्र, तमिलनाडु, असम सहित कई राज्यों में भाषा के आधार पर व्यापारियों के खिलाफ हो रही घटनाओं पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं को लेकर किए जा रहे भेदभाव से व्यापारी समाज न केवल परेशान है, बल्कि असुरक्षा और भय के माहौल में व्यापार करने को मजबूर है।
व्यापारी नेताओं का कहना था कि अगर यही स्थिति बनी रही तो बाहरी राज्यों से आने वाले व्यापारी सुरक्षित व्यापार नहीं कर सकेंगे, जिससे देश की व्यापारिक संरचना को गंभीर नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने आशंका जताई कि इस तरह की घटनाओं के पीछे कुछ क्षेत्रीय संगठन और छोटे राजनीतिक दल शामिल हैं, जो सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने और देश में अराजकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
व्यापारी प्रतिनिधियों ने केंद्र सरकार से अपील की कि वह इस गंभीर मामले में त्वरित और ठोस कदम उठाए, ताकि किसी भी राज्य में भाषा के नाम पर व्यापारियों को प्रताड़ित न किया जा सके। उन्होंने कहा कि यदि समय रहते इस पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो यह प्रवृत्ति देश की एकता, अखंडता और आर्थिक विकास के लिए खतरा बन सकती है।
व्यापारी मंडल ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर उनकी मांगों की अनदेखी की गई तो वे देशव्यापी आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। साथ ही, उन्होंने सभी व्यापारी संगठनों से एकजुट होकर भाषावाद और सीमावाद के खिलाफ आवाज़ उठाने का आह्वान किया।
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